Raksha Bandhan 2023: कैसे शुरू हुआ रक्षाबंधन? जानें इससे जुड़ीं ये 5 रोचक कहानियां

रक्षाबंधन की रोचक कहानियां

Raksha Bandhan 2023:- रक्षाबंधन एक परिवारिक भारतीय त्योहार है जो प्रत्येक वर्ष सावन महीने के पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस त्योहार में बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती है, जिसका मतलब होता है कि वह अपने भाई की सुरक्षा की प्रतिज्ञा करती है और उसे आशीर्वाद देती है। भाई भी अपनी बहन को उपहार देते हैं और उनके साथ प्यार और देखभाल की प्रतिज्ञा करते हैं। यह त्योहार भाई-बहन के प्रेम और बंधन को मनाने का एक खास मौका होता है। यह पर्व भारतीय संस्कृति में परिवार के महत्वपूर्ण रिश्तों को मजबूती देने का एक उत्कृष्ट तरीका है और भाई-बहन के प्यार को उजागर करता है।

भगवान श्रीकृष्ण और द्रौपदी की कहानी

यह कथा हिन्दू पुराणों में से एक, विशेषकर महाभारत के महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत काल में शिशुपाल का वध किया था।  श्रीकृष्ण की सुदर्शन चक्र से उंगली कट गई।

श्री कृष्ण की अंगुली मे से रक्त बहने लगा। तब द्रौपदी ने अपने साड़ी का पल्लू लेकर श्री कृष्ण की उंगली पर बाँधा। उस समय श्री कृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया और कहा कि इस वस्त्र के 1- 1 धागे का कर्ज चुकाऊंगा।

द्युतक्रीड़ा के समय कौरवों ने द्रौपदी का चीर हरण करने का प्रयास किया तब श्री कृष्ण ने अपना कर्ज चुकाया और वचन निभाया और द्रौपदी की लाज बचा ली। जिस दिन द्रौपदी ने श्री कृष्ण को उंगली में पल्लू बाँधा, उस दिन श्रावण पूर्णिमा का दिन था और वह दिन आज हम सब रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) के रूप में मनाते हैं।

युधिष्ठिर की कहानी

यह कथा महाभारत के द्वापर युग में घटित होने वाले महाभारत युद्ध के समय की है। युद्ध के दौरान भगवान श्रीकृष्ण ने अपने दिव्य उपदेशों के माध्यम से महाराज युधिष्ठिर को एक महत्वपूर्ण सलाह दी।

युद्ध के उद्देश्य को समझते हुए युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से उपाय पूछा ताकि वह सभी संकटों को पार कर सकें और युद्ध में विजय प्राप्त कर सकें। इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण सलाह दी, जिसमें उन्होंने कहा कि सभी सैनिकों की कलाई पर रक्षासूत्र (रक्षाबंधन) बांधा जाए। यह रक्षासूत्र सैनिकों की रक्षा के लिए संकेत होता था और इसका पालन करने से सैनिक सुरक्षित रहते थे।

श्रीकृष्ण ने यह सलाह दी क्योंकि उन्होंने यह समझाया कि संकटों और कठिनाइयों के समय में मानवता की एकता और सहायता ही उन्हें आगे बढ़ने में सहायक होती है। रक्षासूत्र के माध्यम से युद्ध के प्रत्येक सैनिक को उनके साथी सैनिकों के प्रति सहानुभूति और सामर्थ्य का अहसास होता था, जिससे उन्हें अधिक उत्साह और संजीवनी शक्ति प्राप्त होती थी।

जिस दिन युधिष्ठिर ने सभी सैनिकों को रक्षासूत्र बांधा, उस दिन श्रावण पूर्णिमा का दिन था और वह दिन आज हम सब रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) के रूप में मनाते हैं।

देवराज इंद्र की कहानी

यह कथा भविष्य पुराण में उल्लेख है। एक बार 12 वर्ष तक देवता और असुरों के बीच युद्ध होता रहा और इस युद्ध में देवताओं की हार हो गई। देवराज इंद्र सभी देवों के साथ अमरावली चले गए और असुरों ने तीनो लोक पर कब्जा कर लिया और उन्होंने ऐलान किया कि राज्य में कोई भी यज्ञ पाठ पूजा या धार्मिक काम नहीं किए जाएंगे। इससे देवराज इंद्र दुखी होकर बृहस्पति के पास पहुंचे।

बृहस्पति के पास उनकी पत्नी शुचि भी उपस्थित थी। देवराज की बात सुनकर शुचि ने कहा- देवराज कल ब्राह्मण शुल्क पूर्णिमा का दिन है। मैं आपको एक रक्षा सूत्र प्रदान करती हूं, उसे कल रक्षा विधान करवा कर ब्राह्मणों के द्वारा अपने कलाई पर बंधवा लेना, आपकी विजय अवश्य होगी।

प्रातः काल देवराज इंद्र ने सूची के बताए अनुसार रक्षा सूत्र को ब्राह्मणों द्वारा अपनी कलाई में बंधवाया और उसके पश्चात देवताओं की युद्ध में विजय हो गई। उस दिन श्रावण पूर्णिमा का दिन था और वह दिन आज हम सब रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) के रूप में मनाते हैं।

Raksha Bandhan 2023: कैसे शुरू हुआ रक्षाबंधन? जानें इससे जुड़ीं ये 5 रोचक कहानियां

रानी कर्णवती और हुमायूं की कहानी

यह कहानी राजस्थान की है। राजस्थान में प्रथा थी कि जब भी कोई राजा युद्ध पर जाता था तो वहां की महिलाएं उनके सिर पर कुमकुम का टीका करती थी और कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती थी। उनका यह विश्वास था कि वह धागा उन्हें युद्ध में जीत दिलाएगा।
गुजरात के शासक बहादुर शाह जफर ने एक बार चित्तौड़ पर हमला कर दिया था। तब चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने बादशाह हुमायूं को रक्षा सूत्र भेजा और उनसे सहायता मांगी। उस समय हुमायूं बंगाल की चढ़ाई कर रहे थे।

राखी मिलने पर वह चढ़ाई छोड़कर रानी करमती की सहायता के लिए चित्तौड़ के लिए रवाना हो गए। जब हुमायूं वहां पहुंचे तब तक देर हो चुकी थी। राखी का फर्ज निभाने के लिए हुमायूं ने जफर से युद्ध किया और जीत हासिल की।

राजा बलि एक दानशील और महान राजा थे, लेकिन उनका अहंकार बढ़ रहा था। भगवान विष्णु ने यज्ञ द्वारा राजा बलि का अहंकार को तोड़ने का सोचा और वामन अवतार में पृथ्वी पर आए। भगवान विष्णु के इस अवतार में, वे एक छोटे बच्चे के रूप में प्रकट हुए जो वामन नामकरण से जाना जाता है।

राजा बलि और माता लक्ष्मी की कहानी

राजा बलि ने यज्ञ का आयोजन किया और भगवान वामन ने वहाँ पहुँचकर तीन कदम जमीन मांगीं। राजा बलि ने अपने  दानीकरण की भावना से भगवान को तीन कदम जमीन देने की प्रार्थना पूरी की। भगवान वामन ने उनकी इस भावना को प्रसन्नता से स्वीकार किया और तीन कदम जमीन में ही पूरी जमीन को नाप लिया।

राजा बलि ने खुशी-खुशी सब कुछ भगवान विष्णु को दे दिया। पर उन्होंने भगवान विष्णु से एक वरदान मांगा कहा कि- “मैं जब भी देखूं तो आपको ही देखूं , सोते जागते, हर पल आपको ही देखना चाहता हूं। भगवान विष्णु ने राजा बलि को यह वरदान दिया और राजा बलि पताल में ही रहने लगे।

भगवान विष्णु हर समय राजा बलि की नजर में रहते थे। जिससे लक्ष्मी जी चिंतित हो गए और जब नारद जी को लक्ष्मी जी ने अपनी चिंता बताई तब नारद जी ने लक्ष्मी जी को एक उपाय बताया ओर कहा कि- आप राजा बलि को अपना भाई बना लीजिए और भाई के रूप में भगवान विष्णु को मांग लीजिए। नारद जी की बात सुनकर लक्ष्मी जी राजा बलि के पास गई और वहां जाकर रोने लगी। तब राजा बलि ने उनसे रोने का कारण पूछा तब माता ने कहा कि मेरा कोई भाई नहीं है, इसलिए मैं रो रही हूं। राजा ने बात सुन कर कहा कि – आज से मैं आपका भाई हूं। तब माता लक्ष्मी ने समय देखकर राजा बलि को राखी बांधी और वरदान के रूप में भगवान विष्णु को मांग लिया। ऐसा कहा जाता है तभी से रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) का त्यौहार को पावन माना गया है।

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Poems on Raksha Bandhan in Hindi :: रक्षाबंधन पर कविता 2023

रक्षाबंधन की कहानी | Raksha Bandhan Story, Shubh Muhurat, Vidhi

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