Maha Shivratri vrat Katha: महाशिवरात्रि से जुड़ी सच्ची व्रत कथा

Mahashivratri vrat Katha: महाशिवरात्रि का पर्व भगवान शिव को समर्पित है, हर वर्ष फाल्गुन मास की चतुर्दशी तिथि पर होता है महाशिवरात्रि का यह पर्व। इस दिन माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा-अर्चना की जाती है और रात्रि जागरण किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार शिवरात्रि पर कथा सुनने का विशेष महत्व है।

चित्रभानु की कथा बताती है महाशिवरात्रि व्रत का महत्व, आइए पढ़ें यह कथा।

महाशिवरात्रि का पर्व हर वर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की फाल्गुण की चतुर्दशी तिथि पर मनाया जाता है।इसी दिन माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा की जाती है। । कुछ लोग यह भी कहते हैं कि इस दिन माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह हुआ था। वहीं कहा जाता है कि महाशिवरात्रि पर भगवान शिव ने अपनी तीसरी आंख खोलकर इस संसार को नष्ट कर दिया था।

हिंदू पंचांग के अनुसार, महाशिवरात्रि का पर्व हर वर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर मनाया जाता है। इस दिन माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि महाशिवरात्रि पर भगवान शिव ने अपनी तीसरी आंख खोली थी और इस संसार को नष्ट कर दिया था। वहीं कुछ लोग यह भी कहते हैं कि इस दिन माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह हुआ था।

महाशिवरात्रि का पर्व सनातन धर्म में बहुत विशेष माना जाता है। महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की आराधना करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और भय पर विजय प्राप्त होता है। मान्यताओं के अनुसार, महाशिवरात्रि पर पूजा करके कथा अवश्य सुननी चाहिए।
महाशिवरात्रि व्रत की पौराणिक कथा (Mahashivratri 2022 Katha):

ज्ञाताओं की बात माने तो शिकारी चित्रभानु की यह कथा शिव पुराण में मिलती है। बहुत समय पहले अपने परिवार का पेट भरने के लिए चित्रभानु शिकार करता था। गरीब होने के चलते उसने साहूकार से कर्ज लिया था जिसको वह समय पर चुका नहीं पाता था। अपना कर्ज वसूलने के लिए एक दिन साहूकार ने चित्रभानु को अपनी कैद में ले लिया जिसके वजह से चित्रभानु को भूखा प्यासा रहना पड़ा था।

इसी बीच चित्रभानु भगवान शिव की आराधना करने लगा। चित्रभानु को पैसे की व्यवस्था करने के लिए साहूकार ने शाम को छोड़ दिया, जिसके बाद चित्रभानु शिकार ढूंढने के लिए जंगल में भटकता रहा। भटकते-भटकते शाम से रात हो गई लेकिन उसे एक भी शिकार नहीं मिला। पास में एक बेल का पेड़ था जिस पर वह चढ़ गया, उसी बेल के पेड़ के नीचे ही एक शिवलिंग मौजूद था।

चित्रभानु ने अर्पित किया बेलपत्र:
चित्रभानु के वजह से बेलपत्र टूट-टूट कर शिवलिंग पर गिरती रहीं। पूरे दिन भूखा-प्यासा रहकर रात में अनजाने में ही सही लेकिन चित्रभानु ने शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पित कर दिया था। रात के समय तलाब के पास एक गर्भवती हिरणी आई। चित्रभानु उस गर्भवती हिरणी को मारने ही वाला था कि तभी गर्भवती हिरनी ने उसे कहा कि वह जल्द ही अपने बच्चे को जन्म देने वाली है। मैं अपने बच्चे को जन्म देकर ‌ आपके पास वापस आऊंगी तब आप मेरा शिकार कर लीजिएगा। गर्भवती हिरणी की बात सुनकर चित्रभानु ने उस हिरणी को जाने दिया और इस तरह महाशिवरात्रि का प्रथम प्रहर बीत गया।

Maha Shivratri vrat Katha: महाशिवरात्रि से जुड़ी सच्ची व्रत कथा

दूसरे प्रहर की पूजा:
चित्रभानु अपने शिकार की तलाश में ही रहा था कि वहां एक दूसरी हिरणी आई। चित्रभानु हिरणी का शिकार करता उससे पहले हिरणी ने कहा कि वह अभी ऋतु से मुक्त होकर आई है और अपने पति की खोज कर रही है। हिरणी ने उससे वादा किया कि वह अपने पति से मिलकर शिकार के पास वापस लौटेगी। चित्रभानु ने उसे जाने दिया इस तरह आखरी प्रहर भी बीत गया। चित्रभानु के वजह से वापस बेलपत्र शिवलिंग पर गिरे जिसके वजह से दूसरे प्रहर की पूजा भी समाप्त हो गई।

lord shiva
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चित्रभानु ने तीसरी हिरणी को भी मुक्त किया:
कुछ समय और बीत गया फिर वहां से तीसरी हिरणी अपने बच्चों के साथ आई, चित्रभानु फिर से हिरणी के शिकार के लिए तैयार हो ही रहा था कि हिरणी ने कहा “मैं इन बच्चों को अपने पिता के पास छोड़ कर वापस आऊंगी।” हिरणी की बात चित्रभानु ने सुनी और फिर उसे भी छोड़ दिया। इस तरह चित्रभानु का पूरा दिन उपवास रहा और रात्रि जागरण भी हो गया।

चित्रभानु ने दिया हिरण को जीवनदान:
चित्रभानु को अपने कर्ज और परिवार की चिंता सता रही थी और वह इसी चिंता में डूबा हुआ था की तभी वहां एक हिरण आया। हिरण ने चित्रभानु को देखते हुए कहा “अगर तुमने तीन हिरणी और उनके बच्चों को मार दिया है तो तुम मुझे मार सकते हो। और अगर तुमने उन्हे छोड़ दिया है तो तुम्हे मुझे भी छोड़ना पड़ेगा। मैं अपने पूरे परिवार के साथ यहां वापस आ जाऊंगा।”

चित्रभानु ने हिरण को घटित घटना बताई और असमंजस्ता जताई। तब हिरण के जवाब से चित्रभानु की असमंजस्त शांत हुई। हिरण ने कहा कि वह तीनों हिरणियां उसीकी पत्नियां थीं। और अगर उसने उस हिरण को मार दिया तो वह तीन हिरणी अपना वादा पूरा नहीं कर पाएंगी। हिरण ने कहा “मेरा विश्वास करो मैं अपने पूरे परिवार के साथ यहां जल्दी वापस आऊंगा।”

चित्रभानु को मोक्ष मिला:
हिरण की सारी बातों को सुनकर शिकारी चित्रभानु ने उसे भी जाने दिया। इस तरह चित्रभानु का ह्रदय परिवर्तन हो गया और साथ ही उसका मन भी पवित्र हो गया। फिर रात भर चित्रभानु ने प्रभु ( शिवजी ) की आराधना भी की थी जिसकी वजह से भगवान शिव उससे अत्यंत प्रसन्न हो गए थे। कुछ देर बाद हिरण अपने पूरे परिवार के साथ चित्रभानु के पास पहुंच गया था।

हिरण और उसके परिवार को देखा तो चित्रभानु बहुत खुश हुआ और उसने फिर हिरण के पूरे परिवार को जीवनदान देने का वचन लिया। इस तरह शिकारी चित्रभानु को शिवजी के आशीर्वाद से मोक्ष की प्राप्ति हुई थी और मृत्यु के पश्चात उसे शिवलोक में जगह मिली थी।

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