Sawan Somvar Vrat Katha सावन सोमवार व्रत कथा

Sawan Somvar Vrat Katha सावन सोमवार व्रत कथा

Sawan Somvar Vrat Katha- प्राचीन कथाओं में बताया गया है सावन के पवित्र महीने में ही समुद्र मंथन हुआ था। समुद्र मंथन देवताओं और असुरों के बीच में हुआ था। इस मंथन में 14 रत्न निकले थे और इसी मंथन से सबसे पहले हलाहल विष निकला था। हलाहल विष की ज्वाला तेज़ होने के कारण चारों तरफ हाहाकार मच गया।

तब देवताओं और असुरों ने मिल कर भगवान शिव की आराधना की। पृथ्वी की रक्षा करने के लिए शिवजी ने हलाहल विष को हथेली पर रखा और पी गए पर उस विष को कंठ से नीचे नहीं उठाता। उसी विष की वजह से शिवजी का कंठ नीला पड़ गया और वो “नीलकंठ” कहलाने लगे।

Sawan Somvar Vrat Katha – भगवान शिव को प्रिय है सावन मास

विष को हथेली से पीते समय थोड़ा सा विष धरती पर गिर गया जो सांप,बिच्छू और जहरीले जंतुओं ने निगल लिया। भगवान शिव को विष के प्रभाव से बचाने के लिए सभी देवी-देवताओं ने शिवजी को जल अर्पित किया, जिससे उन्हें थोड़ा आराम मिला। इस से भगवान शिव खुश हुए तभी से हर वर्ष सावन मास में भगवान शिव को जल चढ़ाने लगे और काफी जगह पर जलाभिषेक भी किया जाता है।

 

Sawan Somvar Vrat Katha सावन सोमवार व्रत कथा

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