Short story for kids || परिस्थितियों से लड़ना सीखे

परिस्थितियों से लड़ना सीखे

Short story for kids-: मैं आज आपको ऐसी कहानी सुनाने जा रही हूं। जो कि मेरी आंखों देखी है। मेरे ही आसपास की है और मुझे यह कहानी “परिस्थितियों से लड़ना सीखे” बताते हुए बहुत अच्छा लग रहा है क्योंकि इससे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला था।

मेरे घर के पास काफी दिन से एक बड़ी बिल्डिंग का काम चल रहा था। वहां बहुत सारे मजदूर काम करते थे।वहां पास में ही मजदूरों के बच्चे भी खेल खेला करते थे। कुछ बच्चे रोज एक दूसरे की शर्ट पकड़कर रेल -रेल का खेल खेला करते थे ।
रोज कोई बच्चा रेल का इंजन बन जाता तो कोई बच्चा डिब्बा बन जाता था। इंजन और डिब्बे वाले रोज बदलते रहते थे और आपस में खेला करते थे। लेकिन उसमे से ही एक बच्चा चड्डी पहना हुआ, हाथ में कपड़ा लेकर रोज उस रेल का गार्ड बनता था।

एक दिन मैंने उन बच्चों के पास जाकर , गार्ड बनने वाले बच्चे को पास में बुलाया और पूछा – अरे! बेटा तुम रोज गार्ड बनते हो।तुम्हें कभी रेल का इंजन या डिब्बा बनने की इच्छा नहीं होती है। इस पर वह छोटा-सा मासूम बच्चा बोला- दीदी मेरे पास पहनने के लिए कोई भी शर्ट नहीं है तो मेरे पीछे वाले बच्चे मुझे कैसे पकड़ेंगे और इस वजह से कोई मेरे पीछे खड़ा भी नहीं हो सकता। इसलिए मैं रोज गार्ड बन कर ही इस खेल में हिस्सा ले लेता हूं। यह बोलते समय उसकी आंखों में पानी भर गया और वह बच्चा मुझे जीवन का एक बहुत बड़ा पाठ पढ़ा कर चला गया।

ना किसी से ईर्ष्या ,ना किसी से कोई होड़..!मेरी अपनी हैं मंजिलें ,मेरी अपनी ही दौड़..!
ना किसी से ईर्ष्या ,ना किसी से कोई होड़..!
मेरी अपनी हैं मंजिलें ,मेरी अपनी ही दौड़..!

Short story for kids || परिस्थितियों से लड़ना सीखे

अपना जीवन कभी भी परिपूर्ण नहीं होता है। उसमें कोई ना कोई तरह की कमी अवश्य रहती है। वह बच्चा चाहता तो अपने मम्मी पापा से गुस्सा होकर बैठ सकता था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया और उस परिस्थिति में भी उसने उसका हल ढूंढा। हम भी अपनी जिंदगी में कितना रोते हैं।

“परिस्थितियां कभी समस्या नहीं बनती,समस्या इस लिए बनती है,

क्योंकि हमें उन परिस्थितियों से लड़ना नहीं आता।”

कभी अपने काले रंग के लिए, कभी अपने छोटे कद के लिए, कभी आसपास में बड़ी कार देखकर, कभी किसी के गले में हीरो का हार देखकर, कभी परीक्षा में मार्क्स देखकर,कभी किसी की अंग्रेजी देखकर,कभी किसी का स्टाइल देखकर, कभी किसी की नौकरी देखकर, कभी किसी का धंधा देख कर, लेकिन कभी भी हम उन सब चीजों के साथ खुद को पॉजिटिव रखने की कोशिश नहीं करते है और हमेशा इन सब चीजों के बारे में सोच कर खुद को डिप्रेशन में ले जाते हैं। सोच लेते हैं कि- अब यह जीवन इसी तरह की से जीना पड़ेगा और हार मान जाते हैं।

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